Sunday, 24 November 2013

Jeevan ka sach - my new poem


रिक्त आया है रिक्त ही जाएगा

ये तेरा, ये मेरा, सब यहीं छूट जाएगा


दो व्रक्ष बन नर-नारी कुछ यूँ सपने पिरोने लगे

भूल के दुनिया - दारी सुहाने सपनों में खोने लगे

चिड़ियों ने आशियाँ डूंडा, घोंसलों में तिनके पिरोने लगे

जल्द पूरी हुई तमन्ना, फिर अंडों को सेनए लगे

ज़िम्मेदारी की बेलें तने को लपटने लगे

इधर की उधर की ना जाने कहाँ की जड़ें पेड़ों को समेटने लगी

उधर अंडों से निकल चूजे अपनी चौन्च को खोलने लगे

बन माता पिता बच्चों के लिए दाना खोजने लगे

बड़े हुए चूजे आज़ादी की चाहत लिए अपने पंखों को खोलने लगे

मा बाप ने उड़ना सिखाया तो उँचियोन को छूने लगे

उड़ गये सपनों की तलाश में, मा बाप आँखों के पानी को पौंचने लगे

उसी तरह पेड़ भी हो गये उम्रदराज तो अपनी जड़ों को समेटने लगे

बैलों ने भी साथ छोड़ा नया आशियाना ढूँडने लगी

सबने छोड़ दिया साथ ढूँढ बने दो व्रक्ष

बस यही सोचने लगे रिक्त आया हे खाली ही जाएगा

ये तेरा, ये मेरा, सब यहीं छूट जाएगा

Friday, 22 November 2013

my new poem "La:


बंदर ओर हाथी दोनों को पसंद हे केला

लगे बीमारी तो काम आता हे करेला

शहरो में मुश्किल हे मिलना तबेला

माल कल्चर छाया बंद हुआ चाट का ढेला

घूमने निकला शेर पर एक अलबेला

पहना था कोट उसने मटमेला

बारिश आई तो खोल लिया झट अंब्रेला

गिरा कीचड़ में क्योंकि दिमाग़ था उसका सॅटकेला

Painting by buttons

 
Blog Directory and Search engine Visit blogadda.com to discover Indian blogs Arts Blogs
top sites