Tuesday, 27 February 2018

श्रद्धांजलि - श्रीदेवी

                                                                              श्रद्धांजलि

चालबाज़ शेरनी की दहाड़ ने जस्टिस चौधरी को धर्माधिकारी ,
बनने का आखरी रास्ता दिखा दिया।

मिस्टर इंडिया की मॉम ने अपनी गुमराह अक्लमंद औलाद को,
हिम्मतवाला बनने का गुर बता दिया।

कोई चंद्रमुखी सोलहवाँ सावन आते ही बन जाती है,
हर लाडले की चाँदनी।

फरिश्तों की निगाहें करती है नाकाबंदी,
हर मवाली को जुदाई का सदमा दे पिला देती हैं पानी।

इंग्लिश-विंग्लिश में बोल हवा-हवाई ने,
हर लम्हे को जी भर जिया।

गुरु बन आर्मी को कर्मा का तोहफा दे, खुदा गवाह ये जूली सिनेमा का इनक़लाब थी।
कभी बनी पुली , कभी ललिता बनी , अभिनय का खज़ाना बेहिसाब थी।

अब तो ये बंजारन सितारों में, बन नगीना चमकेगी।
सिनेमा के करिश्माई इतिहास में, गुलाब की खुशबू बन महकेगी।

अब कोई अपनी नौं-नौं चूड़िया नहीं खनकायेगी।
सो गई चिरनिंद्रा में, तू सदा याद आएगी।।

                                                              "अलविदा श्री"
 

Friday, 2 February 2018

Shalu Gupta Vrati Paintings and Poems: धुंध

Shalu Gupta Vrati Paintings and Poems: धुंध: धुंध छायी है ये कैसी धुंध जहाँ तक आँखों का घेरा है, चहुँ ओर नज़र आती है ये धुंध। सफ़ेद,घने कोहरे का एहसास कराती, दूर-दूर तक छायी है ये कै...

धुंध

धुंध छायी है ये कैसी धुंध
जहाँ तक आँखों का घेरा है,
चहुँ ओर नज़र आती है ये धुंध।
सफ़ेद,घने कोहरे का एहसास कराती,
दूर-दूर तक छायी है ये कैसी धुंध है।
हवा का वेग हुआ आलसी,
सूरज ने भी पहना चश्मा है।
साँसों की भी साँसें घुट गयी,
प्रकृति का ये कैसा क्रोध बरपा है।
शरीर की फिजिक्स सब उल्टी -पुल्टी ,
केमिस्ट्री की वाट लगाई है।
ऑक्सीजन इन और कार्बन डाइऑक्साइड आउट की जगह अब तो,
कार्बन डाइऑक्साइड इन कार्बन डाइऑक्साइड आउट की पूरी तैयारी है।
रोज की दस-पंद्रह सुलगाने वालों का भी,
इसमें हाथ है,
अब देखो इनको आँखों पर चश्मा,
मुँह पर चढ़ा मास्क है।
परत-दर-परत प्रदूषण के आगोश में,
मेरा देश बढ़ा जाता है,
ज़रा सोचो, समझो, परखो, चेतो और देखो,
कौन, किसका और क्या बिगड़ जाता है।
ऊपर अम्बर नीचे नीर,
बीच में धुंधली होती माटी है,
परिणाम स्वरुप मिली धुंध की सौगात,
वही तो हमने मिल बांटी है।
प्रदूषण बढ़ा तो रुका विकास ,
नहीं रुका तो हांफती है सांस,
अज्ञानता का तमस हटाओ, सजगता की रौशनी से करो जगमग,
बस यही आस है।
सोच लो विकास की सांस,
सोच और सत्ता सब तुम्हारी है,
कर लो इसे नियंत्रण में,
जागने और जगाने की बारी तुम्हारी है।
चलो लौट चलें फिर प्रकृति की ओर,
मन के घोड़ों को थोड़ी लगाम तो दो,
जंगलों को कर दो फिर से हरा भरा,
निरीह जानवरों को थोड़ा आराम तो दो।
हाँफती, थकती, सिसकती, कुलबुलाती,
गंगा को फिर से नव जीवन दो,
शुद्ध करो चित्त को पहले,
शांत करो अपने-अपने अन्तरः मन के द्वन्द को।


 
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