रिश्ते -बदलते युग में कितने आम कितने खास
कितने दूर कितने पास
बिना रिश्तों के कोई जीना नहीं
सबको होती है उनकी आस
उतार चढ़ाव, सुख-दुःख सबकी ज़िंदगी का हिस्सा है
बिना इसके इंसान भी कोई इंसान होता है
यूँ तो भगवान को भी जन्म लेकर दुःख सहने पड़े थे
सिर्फ एक बेटी,एक ननद, एक बहु, एक भाभी ही रिश्तों को पकडे
ये किसी भी शास्त्र में लिखा नहीं होता है
गलतियाँ सबसे होती है फिर क्यों बहुओं पर ही
सबकी नजरे आकर टिकती है?
झूठे आडम्बर, खोखली परम्पराओ के नाम पर क्यों बहुँऐ ही
अपमान को प्रचंड अग्नि में जलती है?
झुकना पड़ता है कभी -कभी ऊँचे दरख्तों को भी
क्योंकि किसी का अहम् इतना बलवान नहीं होता
लकिन जब अपने ही नीव खोद डालें तो फिर उस अकड़े दरख्त का शान से उखड
जाना ही उसका भाग्य होता है
ताजे - मीठे फल मैं बन कीड़ा, उसे सड़ाना अच्छी बात नहीं
बजाये इसके उसका बीज बन, आने वाली पुश्तो का तारना सीखें,
हर रिश्ते की नीव भरोसे पर टिकी ,
इससे सच्ची बात और कोई नहीं
यहाँ तेरे-मेरे, अपने-पराये, का भेद नहीं,
ये सब की समझ में कहाँ होती है!
'मै' और 'मेरा' को छोड़ 'हम' और 'हमारा' हो जाये तो फिर ऐसी ऐश,
दुनिया में कहाँ होती है
बच्चे-बच्चे में दरार
इसके-उसके में दरार
मै और मैं में दरार
तू और तुम में दरार,
आप और हम में दरार
कभी सोचा इस दरार की वजह क्या है?
सिर्फ और सिर्फ 'मैं' और 'मेरा' स्वार्थ
स्वार्थ और लालच की खाई ने रिश्तों की बुनियाद ही खोल डाली है
मेहनत और किस्मत किसी के वश में नहीं
मृत्यु की अदा भी अटल और मतवाली है
ना कोई अमर था, न कभी होगा
सब माटी के है माटी में ही सबका खाली हाथ विसर्जन होगा
कुछ न धरा होगा।
कितने दूर कितने पास
बिना रिश्तों के कोई जीना नहीं
सबको होती है उनकी आस
उतार चढ़ाव, सुख-दुःख सबकी ज़िंदगी का हिस्सा है
बिना इसके इंसान भी कोई इंसान होता है
यूँ तो भगवान को भी जन्म लेकर दुःख सहने पड़े थे
सिर्फ एक बेटी,एक ननद, एक बहु, एक भाभी ही रिश्तों को पकडे
ये किसी भी शास्त्र में लिखा नहीं होता है
गलतियाँ सबसे होती है फिर क्यों बहुओं पर ही
सबकी नजरे आकर टिकती है?
झूठे आडम्बर, खोखली परम्पराओ के नाम पर क्यों बहुँऐ ही
अपमान को प्रचंड अग्नि में जलती है?
झुकना पड़ता है कभी -कभी ऊँचे दरख्तों को भी
क्योंकि किसी का अहम् इतना बलवान नहीं होता
लकिन जब अपने ही नीव खोद डालें तो फिर उस अकड़े दरख्त का शान से उखड
जाना ही उसका भाग्य होता है
ताजे - मीठे फल मैं बन कीड़ा, उसे सड़ाना अच्छी बात नहीं
बजाये इसके उसका बीज बन, आने वाली पुश्तो का तारना सीखें,
हर रिश्ते की नीव भरोसे पर टिकी ,
इससे सच्ची बात और कोई नहीं
यहाँ तेरे-मेरे, अपने-पराये, का भेद नहीं,
ये सब की समझ में कहाँ होती है!
'मै' और 'मेरा' को छोड़ 'हम' और 'हमारा' हो जाये तो फिर ऐसी ऐश,
दुनिया में कहाँ होती है
बच्चे-बच्चे में दरार
इसके-उसके में दरार
मै और मैं में दरार
तू और तुम में दरार,
आप और हम में दरार
कभी सोचा इस दरार की वजह क्या है?
सिर्फ और सिर्फ 'मैं' और 'मेरा' स्वार्थ
स्वार्थ और लालच की खाई ने रिश्तों की बुनियाद ही खोल डाली है
मेहनत और किस्मत किसी के वश में नहीं
मृत्यु की अदा भी अटल और मतवाली है
ना कोई अमर था, न कभी होगा
सब माटी के है माटी में ही सबका खाली हाथ विसर्जन होगा
अपने पिटारे में लेकर तो आजतक कोई कुछ भी ना जा सका
सिवा अच्छी यादो के, जमीन जायदाद, हीरे जवाहारातकुछ न धरा होगा।