Saturday, 1 September 2018

DOOBTE KERAL KI PUKAAR

रे इंसान क्या किया, क्या सोचा, क्या पायेगा?
आगे बढ़ने की चाह में जो गड्ढा खोदा है, क्या उसे पाट पायेगा?

भूल कर अपनी जड़ों को मंगल,चन्द्रमा तक क्या जा पायेगा?
इंसान बन कर आया धरती पर, क्या इंसानियत का दर्पण भी देख पायेगा?

क्यों किया, क्या सोचा, क्या पायेगा?

खुद का तो विकास कर लिया,
बदले में प्रकृति को जार-जार किया

गंगा की धरा को रोक बांध बना डाले,
तालाबों को पाटआलिशान आशियानें सजा डाले

चमचमाती सड़कें बनी और कूड़े से पॉलीथीन से नदी-नाले लाद डालें

क्या किया, क्या सोचा और क्या पायेगा?

अब प्रकृति का बदला  देख ,कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा है,
कोई नित नई पार्टी में करता मौज, तो कोई चार दिन से भूखा है।

प्रकृति ने सारे नियम बदल डाले, गर्मी में सर्दी, सर्दी में गर्मी पड़ी है ,

बारिश ने जो अपना कहर बरपाया है,पानी की गहरायी में गयी जमीं है।

पहाड़ से मैदान तक मचा हुआ है हाहाकार,
कहीं बाढ़ का प्रलयंकारी तांडव, कहीं दरकते पहाड़ चहुँ ओर मची हुई है चीख-पुकार।

केरल सदी की भयावह-भयानक प्रलयंकारी बाढ़ की गिरफ्त में है,
न देखी न सुनी ऐसी विभिषिका, अभी तो प्रकृति के हर्जाने की ये एक किश्त भर है।

जहाँ चारों ओर मिर्च-मसालों की सुगंध महकती थी,
आज वहां चीज़ों के,जानवरों के, इंसानों के अवशेषों की गंध है।

कहाँ गए वो मसालों के बागान,नारियल और केलों के लहलहाते खलियान,
कहाँ गए वो ओणम बनाते लोग और कहाँ गयी उनकी खिलखिलाती मुस्कान।

दक्षिण के पर्यटन का कश्मीर कहते थे जिसको ,वो केरल पानी की गहराई में कहीं डूब चूका है,
क्या पक्षी ,क्या जानवर, क्या इंसान, क्या सड़कें सब बाढ़ के प्रचंड प्रकोप का दंश झेल चुका है।

जो बचे ताउम्र वो क्या भूल पाएंगेवो मंजर जो खुली आँख से देख चुके है।

प्रकृति अपनी चेतावनी जारी कर चुकी है,अभी भी वक़्त है चेतने का।
पकड़ो फिरसे अपनी जड़ों को और रोक लो भावी पीड़ी को,मौत की चादर ओढ़ने को ।

जो गया वो फिरसे वापिस तो न आ पायेगा।,
यही वो पल है, मदद को हाथ बढ़ाएं कम से कम जीने का हौंसला तो आएगा।

ज़िन्दगी को पटरी पर लाने की चुनौती भारी है,
केरल से बहुत कुछ पाया अब लौटाने की बारी हमारी है।

बूँद-बूँद से घड़ा भी भर जाता है,तो आओ सब मिल -जुलकर ,थोड़े से ही सिकुड़े हुए केरल को फिरसे बड़ा करदें।

अपनों को खोने का,सपनों के टूटने का, आशियानों के उधड़ने का,जो दर्द है उसे लोगों के दिल से हवा करदें।

केरल अकेला नहीं है, पूरा भारत उसके साथ खड़ा है,
कोशिश है ये पहले से बेहतर बने केरल, मन इसी ज़िद परअडा है।

सलाम है उन लोगों को, जो मसीहा बन बीच मँझधारसे ज़िन्दगियों को बचा लाये,
अब यही दुआ है, तिनका-तिनका जोड़, फिरसे लोगों का आशियाना संवर जाए।
पहाड़ों पर बादल- फाड़ मचा है हाहाकार, दर-दर पल-पल खिसक रहे है पहाड़।
डूब रही है ज़िन्दगी, मसीहा बन रही नाव और पतवार।
क्रमशः।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
क्या घर, क्या सड़कें, क्या इंसान क्या जानवर सब बाद की गोद में है सवार,
सड़को पर गिरता मालवा, मीलों तक थमीं गाड़ियों की रफ़्तार।

TO BE CONTINUED...

Friday, 15 June 2018

rishte-kitne jhoothe, kitne sachche

रिश्ते -बदलते  युग  में कितने आम  कितने खास
कितने दूर कितने पास
बिना रिश्तों के कोई जीना नहीं
सबको होती है उनकी आस
उतार चढ़ाव, सुख-दुःख सबकी ज़िंदगी का हिस्सा है
बिना इसके इंसान भी कोई इंसान होता है
यूँ तो भगवान को भी जन्म लेकर दुःख सहने पड़े थे
सिर्फ एक बेटी,एक ननद, एक बहु, एक भाभी ही रिश्तों को पकडे
ये किसी भी शास्त्र में लिखा नहीं होता है
गलतियाँ सबसे होती है फिर क्यों बहुओं पर ही
सबकी नजरे आकर टिकती है?
झूठे आडम्बर, खोखली परम्पराओ के नाम पर क्यों बहुँऐ ही
अपमान को प्रचंड अग्नि में जलती है?
झुकना पड़ता है कभी -कभी ऊँचे दरख्तों को भी
क्योंकि किसी का अहम् इतना बलवान नहीं होता
लकिन जब अपने ही नीव खोद डालें तो फिर उस अकड़े दरख्त का शान से उखड
जाना ही उसका भाग्य होता है
ताजे - मीठे फल मैं बन कीड़ा, उसे सड़ाना अच्छी बात नहीं
बजाये इसके उसका बीज बन, आने  वाली पुश्तो का तारना सीखें,
हर रिश्ते की नीव भरोसे पर टिकी ,
इससे सच्ची बात और कोई नहीं
यहाँ तेरे-मेरे, अपने-पराये, का भेद नहीं,
ये सब की समझ में कहाँ होती है!
'मै' और 'मेरा' को छोड़ 'हम' और 'हमारा' हो जाये तो फिर ऐसी ऐश,
दुनिया में कहाँ होती है
बच्चे-बच्चे में दरार
इसके-उसके में दरार
मै और मैं  में दरार
तू और तुम में दरार,
आप और हम में दरार
कभी सोचा इस दरार की वजह क्या है?
सिर्फ और सिर्फ 'मैं' और 'मेरा' स्वार्थ
स्वार्थ और लालच की खाई ने रिश्तों की बुनियाद ही  खोल डाली है
मेहनत और किस्मत किसी के वश में नहीं
मृत्यु की अदा भी अटल और मतवाली है
ना कोई अमर था, न कभी होगा
सब माटी के है माटी में ही सबका खाली हाथ विसर्जन होगा
अपने पिटारे में लेकर तो आजतक कोई कुछ भी ना जा  सका 
सिवा अच्छी यादो के, जमीन जायदाद, हीरे  जवाहारात
कुछ न धरा होगा।


Friday, 6 April 2018

jaanvar v/s nakaratmakta

                                                            जानवर v/s नकारात्मकता              

कुछ ऊंचे लोगों की सोच स्पष्ट करती है,
की जानवर घर में नहीं लाते हैं negativity।

उनमें भी दिल धड़कता, खून बहता है,
उनके घर में रहने से बढ़ती है prosperity।

बिना किसी भेद-भाव, लाग-लपेट के रोज़,
बिना नागा करनी पड़ती है physical activity।

डॉक्टर भी अब ये बोलते हैं,
घर में पेट्स रखो बढ़ेगी मन में positivity।

सोचने को सब स्वतंत्र हैं कुछ भी सोचो यार,
सबकी अलग-अलग होती है mentality।

इंसान का पूर्वज भी एक बन्दर था,
क्या इतनी काफी नहीं है similarity।

आत्मा सब में बस्ती है कर्म भी सब भोगते हैं,
और सबमें होती है spirituality।

घर के आँगन में कोई चिड़िया रोज़ आकर बैठे तो,
उसके लिए भी दिल दिखता है loyalty।

बेसहारा, असहाय को जो दे सहारा,
ऐसी सबमें नहीं होती है speciality।

हर देव के संग एक जानवर जुड़ा है,
कुछ तो बात होगी कुछ तो होगी equality।

ऊपर से लाख दिखावा करो प्यार का,
पकड़ लेता है जानवर तुरंत दिल की clarity।

आज इन्सान खुद से अनजान है,
तभी तो रिश्ते निभाने में हो रही है difficulty।

एक हाथ से कभी  ना बजती ,
होनी चाहिए सब में mutuality।

पशु-पक्षी ना करते दम्भ,चाटुकारिता,
उनको समझ आती सिर्फ lovelity।

आलस से ना बात बनती,
जीवन में लादेते punctuality।

इंसानियत तो सब पर लागू होती ,
सोच में कुछ तो लाओ diversity।

कितने जन्म लेकर इंसानी चोगा पहनती है आत्मा,
प्यार की ना सही positive सोच की तो बढ़ाओ ability।           


      

Thursday, 15 March 2018

paper glass dispenser



empty paint bucket use

 


curtain using newspaper



vase using bottle


use of grapes waste branches

 
 

सेरोगेसी - वरदान और अभिशाप

                                                       सेरोगेसी - वरदान और अभिशाप

बच्चे  का  मूल क्या  है -माँ -बाप। दोनों के बिना बच्चे का उद्धभव नामुमकिन है लकिन भैया आजकल तो जमाना विज्ञान का है मतलब सब नकली आज हर चीज की उत्पत्ति मूल रूप से न होकर इंसान के मूड पैर निर्भर हो गए है दिमाग चल्या तो क्लोन बना लिए ,नकली अंडे, चावल, आटा , गोभी  और न जाने क्या-क्या। ये सब अब सिर्फ किताबों मैं ही मिलेगा कि फलां चीज इस से बनती थी. लगभग सभी चीजें तो इंसान ही बनाये जा रहा है इस तरह से तो इंसान ही कलयुग का ब्रम्हा बनता जा रहा है बच्चे भी अपने आराम के हिसाब से पैदा कर रहा है. शादी से आज सब खौफ खाते है शादी जीवन रूपी सागर मैं उस नाव की तरह है. जिसका नाविक अगर पति की तरह मान लें  तो पत्नी पतवार की तरह। दोनों का संतुलन जिंदगी की परेशानी रूपी भंबर को पार करने के लिए जरुरी है. .जरा सा संतुलन बिगड़ा और नाव गई रोज -रोज की लड़ाई और तनातनी रूपी भंबर मैं हिचकोले खाने। बेटा माँ और पत्नी के बीच सैंडविच बनता जाता है। दोनों के बीच मैं सुलह करने के चक्कर मैं पार्चमेंट पेपर बन जाता है। मेरे ख्याल स शादी से पहले लड़का-लड़की की जगह लड़की और सास की जन्मकुंडली मिलनी चाहिए। इन सब पचडों से बचने के लिए ही सरोगेसी की प्रथा बढ़ती जा रही है। इसके लिए शादी की जरुरत ही नहीं है बिना बीवी के बच्चे। अब इक प्रश्न उठता है कि तुम अपनी माँ से बहुत प्यार करते हो इसलिए शादी के बाद की लड़ाई नहीं चाहते। नहि चाहते कि घर मैं सास -बहू की किचकिच हो।  पाश्चात्य संस्कृति भी अपनाने को तैयार नहीं हो तो फिर सरोगेसी ही एकमात्र हल दिखता है। अपने खुद के बच्चे बिना कुछ किये घर मैं आ गए। अपनी माँ तो दुनिया मैं सबसे कीमती लकिन बच्चों की माँ का कोई असितत्व ही नहीं है। तुम तो अपने माँ को मम्मा -मम्मा कहते फिरते नहीं थकते हो। तो तुम्हारे बच्चे किसको मम्मा -मम्मा बोलें तुमको या तुम्हारी माँ को । तुम खुद नहीं चाहते की तुम्हारी ये परंपरा तुम्हारे बच्चे आगे बढ़ाये वही मम्मा  वाली। बच्चे भी तो पूँछ सकते है की उनकी   माँ किधर है। फिर क्या जबाव होगा।और भगवान न करे कि  तुम्हरी माँ नाही रही तो फिर उन बच्चों को  बिना बीवी के घर लेन का क्या फायदा। क्या यह तुम्हारे बच्चों के प्रति तुम्हारा भेदभाव से परिपूर्ण व्यवहार नहीं  है। अभी तो चलो  मान लो तुम्हारे मन की हो गयी आगे बच्चे बड़े होंगे तब हो सकता है की वो भी सरोगेसी  का सोचे तब घर मैं उनकी माँ तो नहीं होगी तुम्हारी तरह तो फिर क्या वो पहले की तरह शादी पर ही यकीन करने लगें और तुम्हे बुरा-भला बोले। या फिर हो सकता है की कोई और नयी तकनीक आ जाये की पत्नी भी रोबोट की तरह बाजार जाओ और अपने हिसाब से बताके आर्डर दो। फिर होम डिलीवरी हो जाएगी। न कोई मायका न कोई ससुराल जिस मुद्दे से बात शुरू हुई थी उसी पर आ कर ख़त्म। यानि की चिकित्सा की दृष्टि से देखो तो वरदान और अपनी जिंदगी आसान बनानी हो तो अभिशाप 

Sunday, 11 March 2018

saas bahu puraan

                                                   
                                                  सास-बहु पुराण

जैसी करनी वैसी भरनी, दुनिया की रीत पुरानी है।

 रहो उसके साथ जिससे दिल की प्रीत पुरानी है।

इंसान बोते समय नहीं सोचते,तो फिर काटते समय क्यों सोचता है।

रहना जिसके साथ है फिर उसी की राहों में, खुशियों के काटे क्यों पिरोता है।

बहुओ के लिए यह कड़वा सच है, ना अपनी थी,ना है,ना कभी होंगीं।

अपना होता है तो सिर्फ "मैं" और मेरे अपनों की ख्वाहिशें, तंमन्नायें, खुशियाँ ,इच्छाएँ, सुविधाएँ ही पूरी होंगीं।

लड़की अपना घर छोड़े और छोड़े माँ बाप।

रिश्ते नाते पीछे रह गए यादें भी छोड़े साथ।

ढूंढे वो एक नयी दुनिया जब आये वो ससुराल।

सास न माने उसको इंसान गिनती आया माल।

मन में इच्छा साथ में लाती टीवी फ्रिज और कार।

लेकिन लोगो को ऐसा दिखाती दहेज़ लेना है बेकार।

ये अत्याचार अब बहु नहीं सहेगी।

अपने अंदर चल रहे अन्तर्दुंद को कहेगी कहेगी कहेगी।

बहु को चाहिए बस थोड़ा सा प्यार, थोड़ा सा मान सम्म्मान।

बदले में क्या मिलता उसको,दिखावे के रसभरे खोल में लिपटा हुआ अपमान ।  

अब कुछ सासों के किस्से सुन लो,

 समझ में आये तो ठीक नहीं तो बल्ले बल्ले।

सँज-सवर तैयार हुई मैडमजी कमर में घोंपा चाबी का गुच्छा।

छम- छम- छम- छम  चले इतराये कांपै बच्चा बच्चा।

काम किये जा काम किये जा कि तू है एक रोबोट।

थकना तो तू भूल जा तोड़े जा दांतो तले अखरोट।

पूजा-पाठ में दम्भ भरा है , मैं करूँ तो करें लोग जी-हुज़ूरी।

में सच्ची मेरी पूजा सच्ची, बाकी की पूजा-अर्चना आधी-अधूरी।

 दिल की धड़कन धुक-धुक करे, बहु ना माने बात।

बहु न माने बात की मारुँ, जम कर इसको लात।

कुत्ते-बिल्ली इसको प्यारे , करती उनकी सेवा।

एक मैं अबला बेचारी, देती नहीं है मेवा।

कि मारूँ जम कर इसको लात , याद आ जाये औकात।

बिन पूछे, बिन् उत्तर के माने मेरी बात।  

जम कर मारुं इसको लात, की उड़ जाएं प्राण-पखेरू।

उड़ जाये प्राण-पखेरू दूजी शादी कर लड़के की , खुशियों के फूल बिखरुं।

खुशियों के फूल बिखरुं, कांटे डालूं बहु की झोली।

खुद रहु बंगले में, उस्को दे दूँ खोली।

बहु को दे दूँ खोली कर दूँ उसका जीना हराम।

कर दूँ उसका जीना हराम, ना करने दूँ आराम।

ना करने दूँ आराम, करवाऊँ काम पे काम।

करवाऊँ काम पे काम, ना ले तू भूख का नाम।

ना ले तू भूख का नाम, किये जा लोगों का सत्कार।

किये जा लोगों का सत्कार कि आज भी बहु ये जीवन जीती है।

जीती है और रोज अपनी तकलीफों को भूल अपमान के घूँट पीती है।

अब कुछ बहुओं से मुलाक़ात।

जाने उनके अंतर्मन की बात।

सूरज जब चढ़ आता है, तब होती है इनकी प्रभात।

आँख मींचतीं पट ये खोलतीं, दे कोई चाय का प्याला इनके हाथ।

चाय पींती मज़े लेकर, अखबार के पन्ने पलटती जाएं।

देखती जब लंच की तैयारी तब तो ये नहाने जाएं।

साठ मिनट में नहाकर निकलीं , फिर घुस जाती ड्रेसिंग रूम।

पतिदेव बिचारे खड़े सोचते , ये औरत इतनी देर करती क्या इन बाथरूम।

सज-संवर कर फिर ये आतीं, सासू जी को मक्खन लगतीं।

मम्मी जी के नारों से खुश कर, फिर शॉपिंग पर ये निकल जाती।

सीधी -सादी सास बेचारी ,आ जाती है बातों मैं।

समझती सब है पर, दिन-रात कुढ़ती है जज़्बातों में।

अब कुछ बैठे-बैठे यूँ ही सोचते है।

दूर कहीं माली पौधों के लिए गड्ढों को खोदते है।

बूढी सास है, टूटी खाट है।

छूटी आस है, उखड़ती सांस है।

फिर  भी रसोई में खाना बनती है-क्यों?

क्यूंकि बहु लल्लनटॉप है, करती जॉब है।

घर में करती है पार्टी , सखियों संग बनती स्मार्टी।

कहीं सास की कहीं बहु की , हर घर की यही कहानी  है।

अहम् को कर दरकिनार, देखो ये ज़िन्दगी नूरानी है।

तेरे-मेरे सपने, गम,दंभ,ताकत,दौलत से भी परे,ना जाने कितनी समस्यायें हैं।

मिल-जल करें सामना , दे बेसहारों को सहारा,क्यों ना किसी रोते चेहरे पर मुस्कान ले आएं।

झूठ के ना पैर होते, भले चीखो चिल्लाओ।

सच तो सामने आता ही है , चाहे जितना ज़ोर लगाओ।

हर जन वो ही पायेगा ,जो उसकी किस्मत , मेहनत का लेखा है।

दूजे की खुशियां छीन दे अपनों को , ऐसा होते कभी देखा है।

इज़्ज़त पैसों से नहीं, मन से होनी चाहिए।

आदर रुतबे से नहीं दिल से होना चाहिए।

मान-सम्मान भय से नहीं ह्रदय से होना चाहिए।

प्यार सिर्फ अपनों से ही क्यों पशु-पक्षियों से भी होना चाहिए।। 

Monday, 5 March 2018

श्रद्धांजलि

एक और ज्योतिपुंज उस परमपुंज में जा मिली।

समझ नहीं आता मानसिक व्याधियों से, जर्जर शरीर से

ज़िम्मेदारी से किससे मुक्ति मिली।।


नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो  न शोषयति मारुतः।।


मृत्यु एक सच है दबे पाँव आती है।

जब तक कोई समझे, सजीव को निर्जीव बना जाती है। 
                                                                          
                                                                                श्रद्धा सुमन अर्पित
                                                                                कुसुम मामी





                                                                                     

Friday, 2 March 2018

apsara

यूँ तो स्वर्गलोग में कई अप्सरा होंगी जैसे उर्वशी और मेनका।

धरती पर श्री देवी को देख मन डोल गया इंद्र का।

इतनी सुंदर नारी को देख इंद्र की नीयत डोल गयी।

मौत की सुरसा मुँह फाड़ रूपकी रानी को लील गयी।

यूँ तो देखे होंगे ढेरों कलाकार जो अभिनय  की बुलंदियों पर छा गए।

यूँ अकस्मात श्रीदेवी के जाने की खबर से जन-जन की आँखों में आंसू आ गए।

प्रणाम तुझे ऐ अभिनय की देवी,
अब न कोई और होगी श्री देवी।।
 

Tuesday, 27 February 2018

श्रद्धांजलि - श्रीदेवी

                                                                              श्रद्धांजलि

चालबाज़ शेरनी की दहाड़ ने जस्टिस चौधरी को धर्माधिकारी ,
बनने का आखरी रास्ता दिखा दिया।

मिस्टर इंडिया की मॉम ने अपनी गुमराह अक्लमंद औलाद को,
हिम्मतवाला बनने का गुर बता दिया।

कोई चंद्रमुखी सोलहवाँ सावन आते ही बन जाती है,
हर लाडले की चाँदनी।

फरिश्तों की निगाहें करती है नाकाबंदी,
हर मवाली को जुदाई का सदमा दे पिला देती हैं पानी।

इंग्लिश-विंग्लिश में बोल हवा-हवाई ने,
हर लम्हे को जी भर जिया।

गुरु बन आर्मी को कर्मा का तोहफा दे, खुदा गवाह ये जूली सिनेमा का इनक़लाब थी।
कभी बनी पुली , कभी ललिता बनी , अभिनय का खज़ाना बेहिसाब थी।

अब तो ये बंजारन सितारों में, बन नगीना चमकेगी।
सिनेमा के करिश्माई इतिहास में, गुलाब की खुशबू बन महकेगी।

अब कोई अपनी नौं-नौं चूड़िया नहीं खनकायेगी।
सो गई चिरनिंद्रा में, तू सदा याद आएगी।।

                                                              "अलविदा श्री"
 

Friday, 2 February 2018

Shalu Gupta Vrati Paintings and Poems: धुंध

Shalu Gupta Vrati Paintings and Poems: धुंध: धुंध छायी है ये कैसी धुंध जहाँ तक आँखों का घेरा है, चहुँ ओर नज़र आती है ये धुंध। सफ़ेद,घने कोहरे का एहसास कराती, दूर-दूर तक छायी है ये कै...

धुंध

धुंध छायी है ये कैसी धुंध
जहाँ तक आँखों का घेरा है,
चहुँ ओर नज़र आती है ये धुंध।
सफ़ेद,घने कोहरे का एहसास कराती,
दूर-दूर तक छायी है ये कैसी धुंध है।
हवा का वेग हुआ आलसी,
सूरज ने भी पहना चश्मा है।
साँसों की भी साँसें घुट गयी,
प्रकृति का ये कैसा क्रोध बरपा है।
शरीर की फिजिक्स सब उल्टी -पुल्टी ,
केमिस्ट्री की वाट लगाई है।
ऑक्सीजन इन और कार्बन डाइऑक्साइड आउट की जगह अब तो,
कार्बन डाइऑक्साइड इन कार्बन डाइऑक्साइड आउट की पूरी तैयारी है।
रोज की दस-पंद्रह सुलगाने वालों का भी,
इसमें हाथ है,
अब देखो इनको आँखों पर चश्मा,
मुँह पर चढ़ा मास्क है।
परत-दर-परत प्रदूषण के आगोश में,
मेरा देश बढ़ा जाता है,
ज़रा सोचो, समझो, परखो, चेतो और देखो,
कौन, किसका और क्या बिगड़ जाता है।
ऊपर अम्बर नीचे नीर,
बीच में धुंधली होती माटी है,
परिणाम स्वरुप मिली धुंध की सौगात,
वही तो हमने मिल बांटी है।
प्रदूषण बढ़ा तो रुका विकास ,
नहीं रुका तो हांफती है सांस,
अज्ञानता का तमस हटाओ, सजगता की रौशनी से करो जगमग,
बस यही आस है।
सोच लो विकास की सांस,
सोच और सत्ता सब तुम्हारी है,
कर लो इसे नियंत्रण में,
जागने और जगाने की बारी तुम्हारी है।
चलो लौट चलें फिर प्रकृति की ओर,
मन के घोड़ों को थोड़ी लगाम तो दो,
जंगलों को कर दो फिर से हरा भरा,
निरीह जानवरों को थोड़ा आराम तो दो।
हाँफती, थकती, सिसकती, कुलबुलाती,
गंगा को फिर से नव जीवन दो,
शुद्ध करो चित्त को पहले,
शांत करो अपने-अपने अन्तरः मन के द्वन्द को।


 
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