Sunday, 11 March 2018

saas bahu puraan

                                                   
                                                  सास-बहु पुराण

जैसी करनी वैसी भरनी, दुनिया की रीत पुरानी है।

 रहो उसके साथ जिससे दिल की प्रीत पुरानी है।

इंसान बोते समय नहीं सोचते,तो फिर काटते समय क्यों सोचता है।

रहना जिसके साथ है फिर उसी की राहों में, खुशियों के काटे क्यों पिरोता है।

बहुओ के लिए यह कड़वा सच है, ना अपनी थी,ना है,ना कभी होंगीं।

अपना होता है तो सिर्फ "मैं" और मेरे अपनों की ख्वाहिशें, तंमन्नायें, खुशियाँ ,इच्छाएँ, सुविधाएँ ही पूरी होंगीं।

लड़की अपना घर छोड़े और छोड़े माँ बाप।

रिश्ते नाते पीछे रह गए यादें भी छोड़े साथ।

ढूंढे वो एक नयी दुनिया जब आये वो ससुराल।

सास न माने उसको इंसान गिनती आया माल।

मन में इच्छा साथ में लाती टीवी फ्रिज और कार।

लेकिन लोगो को ऐसा दिखाती दहेज़ लेना है बेकार।

ये अत्याचार अब बहु नहीं सहेगी।

अपने अंदर चल रहे अन्तर्दुंद को कहेगी कहेगी कहेगी।

बहु को चाहिए बस थोड़ा सा प्यार, थोड़ा सा मान सम्म्मान।

बदले में क्या मिलता उसको,दिखावे के रसभरे खोल में लिपटा हुआ अपमान ।  

अब कुछ सासों के किस्से सुन लो,

 समझ में आये तो ठीक नहीं तो बल्ले बल्ले।

सँज-सवर तैयार हुई मैडमजी कमर में घोंपा चाबी का गुच्छा।

छम- छम- छम- छम  चले इतराये कांपै बच्चा बच्चा।

काम किये जा काम किये जा कि तू है एक रोबोट।

थकना तो तू भूल जा तोड़े जा दांतो तले अखरोट।

पूजा-पाठ में दम्भ भरा है , मैं करूँ तो करें लोग जी-हुज़ूरी।

में सच्ची मेरी पूजा सच्ची, बाकी की पूजा-अर्चना आधी-अधूरी।

 दिल की धड़कन धुक-धुक करे, बहु ना माने बात।

बहु न माने बात की मारुँ, जम कर इसको लात।

कुत्ते-बिल्ली इसको प्यारे , करती उनकी सेवा।

एक मैं अबला बेचारी, देती नहीं है मेवा।

कि मारूँ जम कर इसको लात , याद आ जाये औकात।

बिन पूछे, बिन् उत्तर के माने मेरी बात।  

जम कर मारुं इसको लात, की उड़ जाएं प्राण-पखेरू।

उड़ जाये प्राण-पखेरू दूजी शादी कर लड़के की , खुशियों के फूल बिखरुं।

खुशियों के फूल बिखरुं, कांटे डालूं बहु की झोली।

खुद रहु बंगले में, उस्को दे दूँ खोली।

बहु को दे दूँ खोली कर दूँ उसका जीना हराम।

कर दूँ उसका जीना हराम, ना करने दूँ आराम।

ना करने दूँ आराम, करवाऊँ काम पे काम।

करवाऊँ काम पे काम, ना ले तू भूख का नाम।

ना ले तू भूख का नाम, किये जा लोगों का सत्कार।

किये जा लोगों का सत्कार कि आज भी बहु ये जीवन जीती है।

जीती है और रोज अपनी तकलीफों को भूल अपमान के घूँट पीती है।

अब कुछ बहुओं से मुलाक़ात।

जाने उनके अंतर्मन की बात।

सूरज जब चढ़ आता है, तब होती है इनकी प्रभात।

आँख मींचतीं पट ये खोलतीं, दे कोई चाय का प्याला इनके हाथ।

चाय पींती मज़े लेकर, अखबार के पन्ने पलटती जाएं।

देखती जब लंच की तैयारी तब तो ये नहाने जाएं।

साठ मिनट में नहाकर निकलीं , फिर घुस जाती ड्रेसिंग रूम।

पतिदेव बिचारे खड़े सोचते , ये औरत इतनी देर करती क्या इन बाथरूम।

सज-संवर कर फिर ये आतीं, सासू जी को मक्खन लगतीं।

मम्मी जी के नारों से खुश कर, फिर शॉपिंग पर ये निकल जाती।

सीधी -सादी सास बेचारी ,आ जाती है बातों मैं।

समझती सब है पर, दिन-रात कुढ़ती है जज़्बातों में।

अब कुछ बैठे-बैठे यूँ ही सोचते है।

दूर कहीं माली पौधों के लिए गड्ढों को खोदते है।

बूढी सास है, टूटी खाट है।

छूटी आस है, उखड़ती सांस है।

फिर  भी रसोई में खाना बनती है-क्यों?

क्यूंकि बहु लल्लनटॉप है, करती जॉब है।

घर में करती है पार्टी , सखियों संग बनती स्मार्टी।

कहीं सास की कहीं बहु की , हर घर की यही कहानी  है।

अहम् को कर दरकिनार, देखो ये ज़िन्दगी नूरानी है।

तेरे-मेरे सपने, गम,दंभ,ताकत,दौलत से भी परे,ना जाने कितनी समस्यायें हैं।

मिल-जल करें सामना , दे बेसहारों को सहारा,क्यों ना किसी रोते चेहरे पर मुस्कान ले आएं।

झूठ के ना पैर होते, भले चीखो चिल्लाओ।

सच तो सामने आता ही है , चाहे जितना ज़ोर लगाओ।

हर जन वो ही पायेगा ,जो उसकी किस्मत , मेहनत का लेखा है।

दूजे की खुशियां छीन दे अपनों को , ऐसा होते कभी देखा है।

इज़्ज़त पैसों से नहीं, मन से होनी चाहिए।

आदर रुतबे से नहीं दिल से होना चाहिए।

मान-सम्मान भय से नहीं ह्रदय से होना चाहिए।

प्यार सिर्फ अपनों से ही क्यों पशु-पक्षियों से भी होना चाहिए।। 

No comments:

Post a Comment

Blog Directory and Search engine Visit blogadda.com to discover Indian blogs Arts Blogs
top sites