Thursday, 15 March 2018

paper glass dispenser



empty paint bucket use

 


curtain using newspaper



vase using bottle


use of grapes waste branches

 
 

सेरोगेसी - वरदान और अभिशाप

                                                       सेरोगेसी - वरदान और अभिशाप

बच्चे  का  मूल क्या  है -माँ -बाप। दोनों के बिना बच्चे का उद्धभव नामुमकिन है लकिन भैया आजकल तो जमाना विज्ञान का है मतलब सब नकली आज हर चीज की उत्पत्ति मूल रूप से न होकर इंसान के मूड पैर निर्भर हो गए है दिमाग चल्या तो क्लोन बना लिए ,नकली अंडे, चावल, आटा , गोभी  और न जाने क्या-क्या। ये सब अब सिर्फ किताबों मैं ही मिलेगा कि फलां चीज इस से बनती थी. लगभग सभी चीजें तो इंसान ही बनाये जा रहा है इस तरह से तो इंसान ही कलयुग का ब्रम्हा बनता जा रहा है बच्चे भी अपने आराम के हिसाब से पैदा कर रहा है. शादी से आज सब खौफ खाते है शादी जीवन रूपी सागर मैं उस नाव की तरह है. जिसका नाविक अगर पति की तरह मान लें  तो पत्नी पतवार की तरह। दोनों का संतुलन जिंदगी की परेशानी रूपी भंबर को पार करने के लिए जरुरी है. .जरा सा संतुलन बिगड़ा और नाव गई रोज -रोज की लड़ाई और तनातनी रूपी भंबर मैं हिचकोले खाने। बेटा माँ और पत्नी के बीच सैंडविच बनता जाता है। दोनों के बीच मैं सुलह करने के चक्कर मैं पार्चमेंट पेपर बन जाता है। मेरे ख्याल स शादी से पहले लड़का-लड़की की जगह लड़की और सास की जन्मकुंडली मिलनी चाहिए। इन सब पचडों से बचने के लिए ही सरोगेसी की प्रथा बढ़ती जा रही है। इसके लिए शादी की जरुरत ही नहीं है बिना बीवी के बच्चे। अब इक प्रश्न उठता है कि तुम अपनी माँ से बहुत प्यार करते हो इसलिए शादी के बाद की लड़ाई नहीं चाहते। नहि चाहते कि घर मैं सास -बहू की किचकिच हो।  पाश्चात्य संस्कृति भी अपनाने को तैयार नहीं हो तो फिर सरोगेसी ही एकमात्र हल दिखता है। अपने खुद के बच्चे बिना कुछ किये घर मैं आ गए। अपनी माँ तो दुनिया मैं सबसे कीमती लकिन बच्चों की माँ का कोई असितत्व ही नहीं है। तुम तो अपने माँ को मम्मा -मम्मा कहते फिरते नहीं थकते हो। तो तुम्हारे बच्चे किसको मम्मा -मम्मा बोलें तुमको या तुम्हारी माँ को । तुम खुद नहीं चाहते की तुम्हारी ये परंपरा तुम्हारे बच्चे आगे बढ़ाये वही मम्मा  वाली। बच्चे भी तो पूँछ सकते है की उनकी   माँ किधर है। फिर क्या जबाव होगा।और भगवान न करे कि  तुम्हरी माँ नाही रही तो फिर उन बच्चों को  बिना बीवी के घर लेन का क्या फायदा। क्या यह तुम्हारे बच्चों के प्रति तुम्हारा भेदभाव से परिपूर्ण व्यवहार नहीं  है। अभी तो चलो  मान लो तुम्हारे मन की हो गयी आगे बच्चे बड़े होंगे तब हो सकता है की वो भी सरोगेसी  का सोचे तब घर मैं उनकी माँ तो नहीं होगी तुम्हारी तरह तो फिर क्या वो पहले की तरह शादी पर ही यकीन करने लगें और तुम्हे बुरा-भला बोले। या फिर हो सकता है की कोई और नयी तकनीक आ जाये की पत्नी भी रोबोट की तरह बाजार जाओ और अपने हिसाब से बताके आर्डर दो। फिर होम डिलीवरी हो जाएगी। न कोई मायका न कोई ससुराल जिस मुद्दे से बात शुरू हुई थी उसी पर आ कर ख़त्म। यानि की चिकित्सा की दृष्टि से देखो तो वरदान और अपनी जिंदगी आसान बनानी हो तो अभिशाप 

Sunday, 11 March 2018

saas bahu puraan

                                                   
                                                  सास-बहु पुराण

जैसी करनी वैसी भरनी, दुनिया की रीत पुरानी है।

 रहो उसके साथ जिससे दिल की प्रीत पुरानी है।

इंसान बोते समय नहीं सोचते,तो फिर काटते समय क्यों सोचता है।

रहना जिसके साथ है फिर उसी की राहों में, खुशियों के काटे क्यों पिरोता है।

बहुओ के लिए यह कड़वा सच है, ना अपनी थी,ना है,ना कभी होंगीं।

अपना होता है तो सिर्फ "मैं" और मेरे अपनों की ख्वाहिशें, तंमन्नायें, खुशियाँ ,इच्छाएँ, सुविधाएँ ही पूरी होंगीं।

लड़की अपना घर छोड़े और छोड़े माँ बाप।

रिश्ते नाते पीछे रह गए यादें भी छोड़े साथ।

ढूंढे वो एक नयी दुनिया जब आये वो ससुराल।

सास न माने उसको इंसान गिनती आया माल।

मन में इच्छा साथ में लाती टीवी फ्रिज और कार।

लेकिन लोगो को ऐसा दिखाती दहेज़ लेना है बेकार।

ये अत्याचार अब बहु नहीं सहेगी।

अपने अंदर चल रहे अन्तर्दुंद को कहेगी कहेगी कहेगी।

बहु को चाहिए बस थोड़ा सा प्यार, थोड़ा सा मान सम्म्मान।

बदले में क्या मिलता उसको,दिखावे के रसभरे खोल में लिपटा हुआ अपमान ।  

अब कुछ सासों के किस्से सुन लो,

 समझ में आये तो ठीक नहीं तो बल्ले बल्ले।

सँज-सवर तैयार हुई मैडमजी कमर में घोंपा चाबी का गुच्छा।

छम- छम- छम- छम  चले इतराये कांपै बच्चा बच्चा।

काम किये जा काम किये जा कि तू है एक रोबोट।

थकना तो तू भूल जा तोड़े जा दांतो तले अखरोट।

पूजा-पाठ में दम्भ भरा है , मैं करूँ तो करें लोग जी-हुज़ूरी।

में सच्ची मेरी पूजा सच्ची, बाकी की पूजा-अर्चना आधी-अधूरी।

 दिल की धड़कन धुक-धुक करे, बहु ना माने बात।

बहु न माने बात की मारुँ, जम कर इसको लात।

कुत्ते-बिल्ली इसको प्यारे , करती उनकी सेवा।

एक मैं अबला बेचारी, देती नहीं है मेवा।

कि मारूँ जम कर इसको लात , याद आ जाये औकात।

बिन पूछे, बिन् उत्तर के माने मेरी बात।  

जम कर मारुं इसको लात, की उड़ जाएं प्राण-पखेरू।

उड़ जाये प्राण-पखेरू दूजी शादी कर लड़के की , खुशियों के फूल बिखरुं।

खुशियों के फूल बिखरुं, कांटे डालूं बहु की झोली।

खुद रहु बंगले में, उस्को दे दूँ खोली।

बहु को दे दूँ खोली कर दूँ उसका जीना हराम।

कर दूँ उसका जीना हराम, ना करने दूँ आराम।

ना करने दूँ आराम, करवाऊँ काम पे काम।

करवाऊँ काम पे काम, ना ले तू भूख का नाम।

ना ले तू भूख का नाम, किये जा लोगों का सत्कार।

किये जा लोगों का सत्कार कि आज भी बहु ये जीवन जीती है।

जीती है और रोज अपनी तकलीफों को भूल अपमान के घूँट पीती है।

अब कुछ बहुओं से मुलाक़ात।

जाने उनके अंतर्मन की बात।

सूरज जब चढ़ आता है, तब होती है इनकी प्रभात।

आँख मींचतीं पट ये खोलतीं, दे कोई चाय का प्याला इनके हाथ।

चाय पींती मज़े लेकर, अखबार के पन्ने पलटती जाएं।

देखती जब लंच की तैयारी तब तो ये नहाने जाएं।

साठ मिनट में नहाकर निकलीं , फिर घुस जाती ड्रेसिंग रूम।

पतिदेव बिचारे खड़े सोचते , ये औरत इतनी देर करती क्या इन बाथरूम।

सज-संवर कर फिर ये आतीं, सासू जी को मक्खन लगतीं।

मम्मी जी के नारों से खुश कर, फिर शॉपिंग पर ये निकल जाती।

सीधी -सादी सास बेचारी ,आ जाती है बातों मैं।

समझती सब है पर, दिन-रात कुढ़ती है जज़्बातों में।

अब कुछ बैठे-बैठे यूँ ही सोचते है।

दूर कहीं माली पौधों के लिए गड्ढों को खोदते है।

बूढी सास है, टूटी खाट है।

छूटी आस है, उखड़ती सांस है।

फिर  भी रसोई में खाना बनती है-क्यों?

क्यूंकि बहु लल्लनटॉप है, करती जॉब है।

घर में करती है पार्टी , सखियों संग बनती स्मार्टी।

कहीं सास की कहीं बहु की , हर घर की यही कहानी  है।

अहम् को कर दरकिनार, देखो ये ज़िन्दगी नूरानी है।

तेरे-मेरे सपने, गम,दंभ,ताकत,दौलत से भी परे,ना जाने कितनी समस्यायें हैं।

मिल-जल करें सामना , दे बेसहारों को सहारा,क्यों ना किसी रोते चेहरे पर मुस्कान ले आएं।

झूठ के ना पैर होते, भले चीखो चिल्लाओ।

सच तो सामने आता ही है , चाहे जितना ज़ोर लगाओ।

हर जन वो ही पायेगा ,जो उसकी किस्मत , मेहनत का लेखा है।

दूजे की खुशियां छीन दे अपनों को , ऐसा होते कभी देखा है।

इज़्ज़त पैसों से नहीं, मन से होनी चाहिए।

आदर रुतबे से नहीं दिल से होना चाहिए।

मान-सम्मान भय से नहीं ह्रदय से होना चाहिए।

प्यार सिर्फ अपनों से ही क्यों पशु-पक्षियों से भी होना चाहिए।। 

Monday, 5 March 2018

श्रद्धांजलि

एक और ज्योतिपुंज उस परमपुंज में जा मिली।

समझ नहीं आता मानसिक व्याधियों से, जर्जर शरीर से

ज़िम्मेदारी से किससे मुक्ति मिली।।


नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो  न शोषयति मारुतः।।


मृत्यु एक सच है दबे पाँव आती है।

जब तक कोई समझे, सजीव को निर्जीव बना जाती है। 
                                                                          
                                                                                श्रद्धा सुमन अर्पित
                                                                                कुसुम मामी





                                                                                     

Friday, 2 March 2018

apsara

यूँ तो स्वर्गलोग में कई अप्सरा होंगी जैसे उर्वशी और मेनका।

धरती पर श्री देवी को देख मन डोल गया इंद्र का।

इतनी सुंदर नारी को देख इंद्र की नीयत डोल गयी।

मौत की सुरसा मुँह फाड़ रूपकी रानी को लील गयी।

यूँ तो देखे होंगे ढेरों कलाकार जो अभिनय  की बुलंदियों पर छा गए।

यूँ अकस्मात श्रीदेवी के जाने की खबर से जन-जन की आँखों में आंसू आ गए।

प्रणाम तुझे ऐ अभिनय की देवी,
अब न कोई और होगी श्री देवी।।
 
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