Sunday, 15 December 2013

bachpan - my new poem

मासूमियत की रोशनी से सरोबार बचपन
राजनीति से परे निश्चल निशपाक बचपन
सम भाव लिए गंगाजल सा पवित्र साफ बचपन
पर अब कहाँ वो बेलगाम घोड़े सा सरपट दौड़ता बचपन
खुद के वजन से ज़्यादा बस्ते का  भार ढोता बचपन
प्रतिस्पार्दा की दौड़ मैं कहीं गुम हुआ बचपन
दूरदर्शी बनने की ब्जाय चश्मे से टिमटिमाता बचपन
मा-बाप के सपनो तले छुईमुई सा कुम्ल्हाता बचपन
बन धीर गंभीर खुद को खुद से गुमाता बचपन
ढाबे पर बर्तनो को घिसता बचपन
गली नुक्कड़ पर बेबस लाचार तरसता बचपन
लाल-बत्ती पर खेल खिलोनो को बेचता बचपन
कामकाजी माओं के घर छोटे बचपन को पालता,
सहेजता, प्यार को सिसकता मासूम बचपन......

Sunday, 24 November 2013

Jeevan ka sach - my new poem


रिक्त आया है रिक्त ही जाएगा

ये तेरा, ये मेरा, सब यहीं छूट जाएगा


दो व्रक्ष बन नर-नारी कुछ यूँ सपने पिरोने लगे

भूल के दुनिया - दारी सुहाने सपनों में खोने लगे

चिड़ियों ने आशियाँ डूंडा, घोंसलों में तिनके पिरोने लगे

जल्द पूरी हुई तमन्ना, फिर अंडों को सेनए लगे

ज़िम्मेदारी की बेलें तने को लपटने लगे

इधर की उधर की ना जाने कहाँ की जड़ें पेड़ों को समेटने लगी

उधर अंडों से निकल चूजे अपनी चौन्च को खोलने लगे

बन माता पिता बच्चों के लिए दाना खोजने लगे

बड़े हुए चूजे आज़ादी की चाहत लिए अपने पंखों को खोलने लगे

मा बाप ने उड़ना सिखाया तो उँचियोन को छूने लगे

उड़ गये सपनों की तलाश में, मा बाप आँखों के पानी को पौंचने लगे

उसी तरह पेड़ भी हो गये उम्रदराज तो अपनी जड़ों को समेटने लगे

बैलों ने भी साथ छोड़ा नया आशियाना ढूँडने लगी

सबने छोड़ दिया साथ ढूँढ बने दो व्रक्ष

बस यही सोचने लगे रिक्त आया हे खाली ही जाएगा

ये तेरा, ये मेरा, सब यहीं छूट जाएगा

Friday, 22 November 2013

my new poem "La:


बंदर ओर हाथी दोनों को पसंद हे केला

लगे बीमारी तो काम आता हे करेला

शहरो में मुश्किल हे मिलना तबेला

माल कल्चर छाया बंद हुआ चाट का ढेला

घूमने निकला शेर पर एक अलबेला

पहना था कोट उसने मटमेला

बारिश आई तो खोल लिया झट अंब्रेला

गिरा कीचड़ में क्योंकि दिमाग़ था उसका सॅटकेला

Painting by buttons

 

Monday, 30 September 2013

नारी असीमित शक्ति


जिसमें निवास करते देवता चौरासी हज़ार

ऐसी, गौ माता को नमन बार-बार

ऐसी ही एक अमुल्य निधि स्त्री का अवतरण हुआ पृथ्वी पर

धैर्य, संयम, आत्मविश्वास, ईमानदारी की प्रतिमूर्ति इसको नमन कर

खुद भूखी पर बच्चों का पेट भरे, ना इसकी उमीदों का दमन कर

जिंदगी की हर कसोटी से खरी उतरती, ना इसको मशीन की श्रेणी में रख

सीता, लक्ष्मी बाई, सावित्री जैसी नारियों से इतिहास भरा है इसका कुछ तो पठन कर

अपनों को देख मुश्किल में काली बनते देर ना लगती, इसका भी कुछ ख़ौफ़ कर

अपनी माँ भी कभी बेटी थी, इसको याद कर

जीवन देती हैं, तो जीवन ले भी सकती हैं

अंबा है, गौरी है तो काली भी बन सकती है
समझ जा नारी की शक्ति को, हौसले को, विश्वास को, कभी तो इसकी महिमा का बखान कर

Sunday, 15 September 2013

Painting - View of small town.

View of small town.. Remembering old days of our small town.. See Natural open Air effects

Sunday, 1 September 2013

kaash

सुन रे पागल मन तू क्यों हे इतना चंचल
नव-नव रूपों को देखके, बदला है क्यों पल-पल
पूर्णिमा की दूधिया रात मैं जब उज्वल सा चाँद नज़र आए
काश की ऐसा हो की वो मेरी शर्ट का बटन बन जाए
काली अमावस रात को जब तारे टिमटिम टिमटिमाएँ
काश की ऐसा हो की वो मेरी साड़ी के झिलमिल सितारे बन जाए
सुप्रभात मैं जब उगता सूरज आसमन की चादर पर लालिमा फ़ैलाएँ
काश की ऐसा हो की वो मेरे माथे की बिंदिया बन सज जाए
सावन मैं जब मेघ घूमड़-घूमड़ अपना वेग बरसयाँ
काश की ऐसा हो जब हो ईश्वर से साक्षात्कार, वो इन नैनो की अश्वधारा बन जायें

Water Painting- Woman


Wednesday, 21 August 2013

आज कल के बच्चे

बच्चों की मासूमियत और अज्ञानता का मिला जुला असर देखो
लॅपटॉप कंप्यूटर और गेम्स मैं इंडल्ज हुए बच्चों को देखो
देशों के नाम पता नहीं क्रिमिनल केस, बाइक रेस के खानदानी बने फिरते हैं
अपने देश मैं कितने राज्य हैं, पूछो तो घंटो पानी भरते हैं
एक कक्षा मैं टीचर ने बच्चों से पूछा-गेट से कोई बुलाए इसकी अँग्रेज़ी बताओ
एक बच्चे ने जवाब दिया-कॉल गेट
फिर टीचर ने बच्चे से पूछा- जिन राज्यों मैं खंड लगते हैं उनके नाम सोचो
उतरा खंड, अहिंसा खंड, वैभव खंड बच्चे ने दिया फाटक से जवाब दिया
और बोला टीचर जी और पूछो

Monday, 19 August 2013

Mailaun ki bahaane Dil kae taraane

झूला कुलफी और सर्कस में
बच्चों के मन हैं हरषाए
एक दूजे संग वक्त बितायैन
मैलो के दिन हैं आए
तीज रक्षाबन्धन जन्माष्टमी गणेश चतुर्थी
नवरातें और दस्शरे के अब्सर पर
अपनो संग वक्त बिताएँ
मेलों के दिनहै आए
काम की भगा-दौड़ी मैं
पैसो की जोड़ा-जोड़ी मैं
समय हो गया बेशक़ीमती
करते रहो नॉटो की गिनती
भागम-भाग की इस घड़ी को कहीं गुमायैन
अपनो संग कुछ वक्त बिताए
मैलो के दिन हैं आए
रिश्तान की डोरी टूटी
अपनो संग जोड़ी छूटी
अहम हो गया बहुत ज़रूरी
खून ने खून की बाह्न मरोरी
ज़मीन जयदाद पाने की  चाह मैं'
रुकावट के लिए खेद है' का बोर्ड लगाए
अपनो संग कुछ वक्त बिताए
मेलो के दिन हैं आए
पॅंच तत्व का ये शरीर
आख़िर मैं मिट्टी होना हैं
जिसका अंत निश्चित है
उसके लिए क्यूँ अपनो को खोना हैं
इस अमूल्य सच को अपनाए
अपनो संग कुछ वक्त बिताए
मेलो के दिन हैं आए

Saturday, 10 August 2013

खरगोश की चतुराई

एक जंगल मे रहता एक दुष्ट शेर
करता था वो सभी जानवरों को ढेर 
सबने मिल कर एक उपाय सोचा
रोज शेर के पास एक जानवर भेजा
अब बारी खरगोश की आई
उसने एक तरकीब लगाई
शेर के पास पंहुचा वो बड़ी देर से
भूख से व्याकुल शेर बोला बड़े गुस्से से
देर से क्यों आये हो क्यों इतने घबराये हो
जान बचाकर आया हूँ इसलिए इतना घबराया हूँ
महाराज रस्ते में मिल गया एक दूजा शेर
दूजा शेर चलो मुझे तुम ले चलो अभी करता हूँ उसको ढेर 
खरगोश शेर को कुएँ  पर लाया बोला यही है उसका घर
शेर ने अन्दर झाँका तो खुद की परछाई आई नज़र
गुस्से में उसे कुछ न सूझा झट कुँए में कूद गया
तैरना आता न था उसको -और कुँए में डूब गया
बच्चो इस कहानी से तुम यह ज्ञान लो
मुश्किल में पढो तो बुद्धिमानी से काम लो
गुस्से में लम्बी सांस भरो तुम
बिन सोचे ना कोई काम करो तुम 

F3(Favorite, Fast, Food)

हाथी भाई सूंड हिलाते मस्त चाल आते हो तुम
भारी देह हुई कैसे क्या फास्ट फुड खाते तुम
फास्ट फुड का जमाना है भैया, पार लगे अब सबकी नैया
बर्गर पिज़्ज़ा फ्रेंचफ्राईज़
कोल्डड्रिंक चाऊमीन ने बड़ा दिया साइज़
बच्चे बूढ़े और जवान खाते सब इसको खुलेआम
टिंग-टोंग٠٠٠ होम डिलीवरी हो जाती है कौन करे अब किचन मैं काम
पार्लर से सजधज कर निकलो अब बलखाओ इठलाओ
बच्चे जो खाना माँगे झट पिज़्ज़ा हट का नंबर घूमाओ
बच्चो का पिज़्ज़ा मस्त मस्त
आइस्क्रीम और मैगी मस्त मस्त
दूध दही घी, नो जस्ट जस्ट
फ़ास्ट फ़ूड, बस फर्स्ट फर्स्ट
क्यूंकि यह दिल मांगे मोर  आहा ٠٠٠٠٠٠٠٠٠٠٠٠

Saturday, 6 July 2013

Aaloo Matar Ki Shaadi

आलू की शादी मंडी में , सब्जी बने बाराती
देखो कैसे सज धज बैठे, सब के सब घराती
शल्जम ने सजाया पंडाल, मंडप अति सुन्दर
संग बैठा हे आलू , देखो लाल चकुंदर
पतली नाजुक सी मटर, दुल्हन बनी बड़ी सयानी
सजी संवरी इतराये, इठलाए भिन्डी रानी
बैंगन प्याज बने हैं भैया, दावत का काम संभालें
अरबी लाल टमाटर धनिया, पोधिना के अंदाज निराले
नीम चडा करेला आये, पहन कर हरा पाजामा
पैठे के संग ढोल पे नाचे, टिंडा खीरा मामा
पत्ता गोभी मिर्ची पीसे , न जाने क्या बतियाती
सुन्दर सलोनी गोभी अपने, रूप पर इतराती
समधी बने हैं कददू कटहल, बैठे हैं बन ठन के
आलू मटर की जोड़ी, खन -२ चूड़ी खनके
गाजर मूली अरबी ने जम कर पेग चड़ाए
वर वधु को दिया आशीर्वाद , खुशियों के गीत गाये

Wednesday, 3 July 2013

Prakrati Ka Badla


कुछ यूँ घटा केदार घाटी पर तबाही का मंजर

अब तो समझ ले मानव प्रकृति और विज्ञान में अंतर

वक़्त है संभल जा नहीं तो प्रकृति कहर बर्पायेगी

इंसानी रूह तो क्या पत्ता-२ , डाली-२ काँप जायेगी

मत बाँध नदियों को, पहाडों को ना कर खोखला

तांडव होगा चहूँ ओर अगर प्रकृति ने अपना तीसरा नेत्र खोला

तिल्वादा, रामबाड़ा,गोविन्दघाट,उत्तरकाशी,

गोरीकुंड की वोह रौनक कहाँ गयी ?

अपने गरेबां में झाँक कर देख मानव

तेरे विकास की चाह ही तो उसे नहीं लील गयी?

अपनों ने अपनों को खोया

घर बार रोजी रोटी की चिंता में इंसान रोया

मन्दाकिनी, अलकनंदा गुस्से में उफ़्नाइय

बड़े बड़े पत्थर, चट्टानें , कार, ट्रक सबको बहा लायीं

वक़्त की चेतावनी है सुन लो

चीखती वादियों को, चीखौं को

सुलगते पहाडों की गर्जन को

पिघलते गल्चिएर की तडपन को

मैली होती नदियों की सिसकन को

दूषित होते वातावरण के रुदन को

जो बोयेगा वही पायेगा

इस सच्चाई को मान जा

प्रकृति से न कर छेड़छाड़

जान जा जान जा

अब नहीं जाना तो जान जायेगी

मानचित्र से पूरी दुनिया की तस्वीर ही बदल जायेगी

 
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