Sunday, 12 April 2020

आत्मा - एक सुलगता सत्य

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥

कोई भूखा मारा, कोई प्यास में। 
कोई बीमारी से तड़पा, कोई अपनों की आस में।  
किसी ने अपनों में दम तोडा, कोई गया अज्ञात में।  
किसी को खौफ ने सताया, बहुत गए जमात में।  
कुछ गिरे जमीन पे औंधे मुहं, मन में उड़ने की चाह लिए।  
कुछ पहल से ही थे अर्श पर, निकल पड़े वीरनौ में विचित्र से आह लिये।
क्या फूटबाल , क्या क्रिकेटर, क्या वैज्ञानिक या हो बड़ा एक्टर।  
इसने (कोरोना) ना किया कोई समझौता, चल दिया इंसान सब कुछ छोड़ कर। 
इसने भेदभाव से दुरी बनायी, सम्पूर्ण विश्व को ही अपनाया। 
जिसने दिखाया सत्ता का दम्भ, पल भर में उसे आइना दिखाया।  
यम दूतों ने रच दिया चर्कव्युह, फँस गयी लाखों की जान है। 
इस बार संभाल ले मालिक, दिल में बस यही अरमान है। 
में अजर अमर अविनाशी सत्य, निडर निरभीक भयावह। 
अमावास्या का नितांत स्याह अँधेरा, पूर्णिमा से अलंकृत एक उज्वल धवल सी सुबह 

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